राष्ट्रीय तिलहन मिशन अंतर्गत सोयाबीन समूह प्रदर्शन, कृषको को उन्नत किस्म के बीज का वितरण
कवर्धा, 01 जुलाई 2025। कृषि विज्ञान केन्द्र कवर्धा द्वारा सोयाबीन की उन्नत कास्त तकनीक विषय पर कृषक संगोष्ठी सह आदान सामाग्री वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम मे जिला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि श्री लोकचंद साहु एवं जनपद पंचयात बोड़ला के कृषि स्थाई समिति के सभापति श्री नरेश साहु ने कृषको को आदान सामाग्री का वितरण किया। भारत तिलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन देश में खाद्य तेलों की बढ़ती मांग के साथ तालमेल नही रखता है। इससे खाद्य तेलों के आयात में पर्याप्त वृद्धि हुई है। इस लिए भारत में तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय विभाग द्वारा देश के विभिन्न राज्यों में तिलहन को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- तिलहन अंतर्गत समूह अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का आयोजन किया जा रहा है।
इस परियोजना अंतर्गत कबीरधाम जिले को लगभग 98 हेक्टेयर में सोयाबीन फसल का प्रदर्शन का लक्ष्य प्राप्त हुआ है। यह प्रदर्शन विकासखण्ड बोड़ला के ग्राम कांपा एवं विकासखण्ड स. लोहारा के ग्राम रमपुरा में लिया जा रहा है। जिसमें कृषकों को योजना के दिशा-निर्देशानुसार उन्नत किस्म के प्रमाणित बीज जो 5 वर्ष के अंदर के अवधि का बीज सोयाबीन किस्म त्टै 2011.35 में बीजोपचार हेतु पी.एस.बी., राइजोबियम कल्चर कृषकों को वितरण किया गया। प्रदर्शन पूर्व कृषकों को संगोष्ठी के माध्यम से सोयाबीन की वैज्ञानिक पद्धति की संपूर्ण जानकारी दी गई। जिसके तहत कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रममुख, डॉ. बी.पी. त्रिपाठी द्वारा तिलहन उत्पादक किसानों को कृषकों को 2-3 वर्ष के अंतराल में मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करने एवं बीज उपचार करने के पश्चात ही बुआई करने की सलाह दी गई एवं किसानों को बुवाई पद्धति में चैड़ी क्यारी पद्धति एवं सीड ड्रील से बुवाई हेतु प्रेरित किया गया। बुवाई पूर्व बीजोपचार हेतु सोयाबीन में 3ग्राम प्रति किलो बीज की दर से फफूंदीनाशक एंव 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से थायोमिथाक्सम से उपचारित करने के पश्चात 5-10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से पीएसबी एवं राइजोबियम कल्चर से बीज उपचार करना चाहिए। सोयाबीन बोने से पूर्व बीज का अंकुरण परीक्षण अवश्यक कर लेवें एवं न्यूनतम 70 प्रतिशत होने पर ही बीज का उपयोग का सुझाव दिया गया।
योजना कि शुरूआत के पूर्व कृषकों के प्रक्षेत्र का चयन तथा मृदा का संग्रहण किया गया। कृषकों को मृदा परीक्षण अनुसार अनुशंसित मात्रा में उर्वरको के उपयोग की सलाह दी गई। तिलहन फसलों में गंधक तत्व का महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। कृषकों को सलाह दी गई की वे डी.ए.पी. के स्थान पर सिंगल सुपर फास्फेट (राखर) खाद का उपयोग करना चाहिए जिससे स्फुर के साथ-साथ कैल्शियम एवं सल्फर की अतिरिक्त की आपूर्ति होती है। कृषकों को सोयाबीन में प्रति एकड़ 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट (राखर) एवं 8 किलोग्राम यूरिया तथा 13 किलोग्राम पोटाश बुआई के समय उपयोग करने की सलाह दी गई। पोटाश उपयोग करने से पौधे मजबूत होते है एवं कीट एवं रोगो के प्रति सहनशील होता है। खरपतवार प्रबंधन हेतु बुआवई के 20 दिन के आस-पास जब खरपतवार दो पत्ति की अवस्था में हो तब निंदानाशक इमाझेथापर 10 प्रतिशत एस.एल. की 300 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ फ्लैट फैल नोजल से छिड़काव करने की सलाह दी गई। इस कार्यक्रम में लगभग 100 कृषको ने भाग लिया।
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